तुझे इश्क हो ये ख़ुदा करे,
तुझे कोई उस से जुदा करे
तेरे होंट हँसना भूल जाएँ,
तेरे आँखें पुर-नम रहा करे
तू जिसे भी देख कर रुका करे,
वो नज़र झुका के चला करे
तू इस की बातें सुना करे,
वो किसी और की बातें कहा करे
तुझे दोस्ती भी न आये रास,
तू तन्हा तन्हा रहा करे
तुझे हिज्र की वो झड़ी लगे,
तू मिलन की हर पल दुआ करे
तेरे ख्वाब बिखरें टूट कर,
तू किर्ची किर्ची चुना करे
तुझे इश्क पर हो यकीन तब,
उसे तस्भियों में पढ़ा करे
फिर मैं कहूं इश्क तो ढोंग है,
तू नहीं नहीं किया करे!!!
पुर-नम = Tearful
हिज्र = Separation
किर्ची किर्ची = In Small Pieces
तस्भियों = A String of Beads Used in Counting Prayers
I came across this absolutely mesmerizing ghazal today. I tried but could not find out who the poet is. I had got into the poetic mood after three days and was trying to complete my unfinished ghazal. But this piece of poetry consumed me completely. I was not able to think anything at all except this. I have got to make a presentation tomorrow and I am just thinking about this poem and writing it on my blog. This seems so foolish.
November 19, 2007 at 4:31 AM
बहुत बढिया..शिकायत जायज लगती है।
Post a Comment