Counter Strike
My take on the things and events in the world.

ओस

वो जहाँ आसमान से ज़मीन मिलती है,
वहीं से निकला था सूरज|
हल्का, लाल,
नर्म धुप लाया था साथ,
पक्षियों कि चेहचाहट भी|
थोडे से फूल,
और ओस की कुछ बूँदें|
एक लंबी रात के बाद,
सुहाना सवेरा|

देखता रहा मैं,
और सोचता रहा,
क्या यही है मेरी मंजिल?
क्या यही हैं वो फूल,
कि जिनकी ओस कि बूंदों पे मेरा हक है?

ओस की बूँदें....
मिट गयीं अचानक|
जल गए फूल|
वो पक्षियों की चीत्कार,
कानो के बीच से,
मस्तिष्क को चीरती हुयी,
गूँज उठी मातम की तरह|
सूरज की लाली में खून के धब्बे,
और उनसे बहती हुयी गर्म धुप|
झुलस रहा है रोम रोम मेरा|
परों के नीचे उबलता हुआ रेत,
जकड़ रहा है क़दमों को|

अब रुका तो मेरी सांस न रूक जाये कहीं,
मेरे थमने से मेरी नब्स न थम जाये कहीं|
पूरी ताकत को जुटा कर,
एक कदम और सही|
नयी सुबह की तलाश में,
एक सफर और सही...
2 comments:

वो जहाँ आसमान से ज़मीन मिलती है,
वहीं से निकला था सूरज|
हल्का, लाल,
नर्म धुप लाया था साथ,
पक्षियों कि चेहचाहट भी|
थोडे से फूल,
और ओस की कुछ बूँदें|
एक लंबी रात के बाद,
सुहाना सवेरा|

कविता का आरंभ व चित्रण अनुपम है!
लिखते रहिए
संजय गुलाटी मुसाफिर


उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मुसाफिर जी|



Followers

Recent Comments