जीवन के लम्हे सपने से हैं
सभी तो यहाँ अपने से हैं
दोस्तों के मजमें से हैं
हम भी कुछ मद में से हैं
आंखों में फिर भी नमी सी है
कहीं पर कुछ कमी सी है
लक्ष्य तो आसमान सा है
विश्वास भी विद्यमान सा है
रास्ता कुछ मुश्किल कुछ आसान सा है
हर कोई वेगमान सा है
ज़िंदगी फिर भी थमी सी है
कहीं पर कुछ कमी सी है
November 8, 2007 at 3:56 AM
"कहीं पर कुछ कमी सी है ....."
सही है. ये दशा शायद हर इंसान की है. आज ही radiovani पे भूपेंद्र की ग़ज़ल सुनी "कभी किसी को मुक़म्मिल जहाँ नहीं मिलता".
लेकिन ये कमी, और इस कमी की निरंतरता, शायद आवश्यक भी हैं जीवन में. ये कमी ( एक पल के लिए इसे मृगतृष्णा कहूँ ? ) न रहे तो ज़िंदगी कुछ और दूभर न हो जाए ?
बहरहाल. शुक्रिया
November 8, 2007 at 10:53 PM
लेकिन कई बार ये कमी इतनी आधारभूत होती है कि बाक़ी सब बातें बेमानी लगने लगतीं हैं| और जीवन कि सचाई में भी एक खोखलापन महसूस होता है| जैसा मेरी हर पंक्ति में कहने कि प्रयत्न है, कोई भी चीज़ निश्चित प्रतीत नही होती (विश्वास भी विद्यमान "सा" है)| जैसा आपने कहा, कमी बहुत आवश्यक है और मूलभूत सत्य है, लकिन कमी ऐसी न हो कि जीवन ही बेमानी लगे|
November 11, 2007 at 8:34 AM
Interesting truth conveyed through beautiful lines! ..the "Sa Si Se" makes them more convincing..
November 11, 2007 at 5:15 PM
Thanks for the compliments Ashu. Its nice to know that you liked it.
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