किस तरह शोक करूँ कैसे रुलाऊँ दिल को,
कई बरसों का दिल से इंतकाम लेना है
कैसे अफ़सोस करूँ कारवाँ के लुटने का,
मेरा माज़ी तो कभी खुशगवार था ही नही
किस को मैं याद करूँ बस कि तड़प उठ्ठे दिल,
किसी हबीब का चेहरा ही मुझे याद नही
और जो याद है मैं उसका कभी हो न सका,
अब उसके रूठ के जाने का ग़म करूँ कैसे?
किसकी तमन्ना करूँ अब कोई मेरे पास नही,
दूर से देखता हूँ मंज़िल को सहम जाता हूँ
किस तरह शोक करूँ कैसे रुलाऊँ दिल को,
कैसे यह आह निकालूँ तुम ही बता दो मुझको
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक,
हम ने एक उम्र बिता दी ये आह नही निकली
(Dedicated to Mirza Asadulla Khan Ghalib, as the inspiration to write every word of this poem has come from his immortal lines "Aah ko chahiye ek umr asar hone tak...".)
January 26, 2008 at 1:02 AM
expressing pain is more difficult than expressing happiness,very very nice one.
March 30, 2011 at 5:53 PM
aah ko chahiye ek umra asar hone tak....
khaak ho jayenge ham tumko khabar hone tak...........
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