जब सवालों भरी निगाहें
बेरुखी के जवाबों से मिलती हैं
तो एक अजीब सी उलझन पैदा होती है
एक कश्मकश
जो बेचैन कर देती है
सरसराहट बन कर
पूरे जिस्म में दौड़ जाती है
और दौड़ती रहती है
आखों में आरज़ू बन कर
ख्वाबों में जुस्तजू बन कर
और दिल में मोहब्बत बन कर
नहीं...
यह आरज़ू है, जुस्तजू भी लेकिन मुहब्बत...
नहीं...
क्योंकि मोहब्बत का जवाब बेरुखी नहीं हो सकता
क्योंकि मोहब्बत तो सवाल है ही नहीं
यह तो जवाब है
सब सवालों का
मोहब्बत
बेरुखी नहीं...
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